करगिल शिखर सम्मेलन LIVE Updates: राज्यवर्धन सिंह राठौड़ बोले- अब देश की सेना इंतजार करती है आतंकी आएं और हम उनका सफाया करें

आज करगिल विजय दिवस की 20वीं वर्षगांठ है. इस मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जम्मू कश्मीर के द्रास में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंगे. तीन दिन मनाए जाने वाले कार्यक्रम का समापन 27 जुलाई को दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में होगा जिसमें पीएम मोदी शामिल होंगे.

एबीपी माझा वेब टीम Last Updated: 26 Jul 2019 02:01 PM
करगिल शिखर सम्मेलन में पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर ने कहा कि हम आज जहां पर बैठे हैं उसकी एक बड़ी वजह है सेना. मैं 12वीं के बाद सेना में जाना चाहता था. लेकिन मैं इसे मिस करता हूं.
करगिल शिखर सम्मेलन में पूर्व क्रिकेटर कपिल देव ने कहा कि हमारे जवानों ने जो किया है उसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता है. जब बच्चे छोटे होते हैं तो एक मां जरूर अपने बच्चों को सेना वाली ड्रेस देती है. भारतीय सेना का नाम दुनिया में लेते हैं.
राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा- डोनाल्ड ट्रंप के लिए मैं क्या कहूं, ट्रंप साहब के लिए तो उनका देश ही कहता है उनकी हर बात सीरियसली नहीं लेनी चाहिए.
कुलभूषण जादव पर राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा- कोई सैनिक या अधिकारी रिटायरमेंट के बाद अपने परिवार के लिए काम करने बाहर जाता है. आप उसे जबरदस्ती पकड़ लेते हैं, कोई काउंसुलर एक्सेस भी नहीं देते. उन पर गलत आरोप लगाओ. हम तो उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान की न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष रूप से चले, उन्हें जल्द से जल्द काउंसलर एक्सेस मिले. पाकिस्तान को अंदाजा हो गया है कि भारत कमजोर देश नहीं है. हम दोस्ती भी करते हैं और जवाब भी देते हैं. पाकिस्तान को बिल्कुल बहिस्कार देना चाहिए, जो आज हो रहा है. आज हमारे पास एक मजबूत नेतृत्व है.
महेंद्र सिंह धोनी के लेकर पूछे गए सवाल पर राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा- इस देश के अंदर सबसे बेहतरीन संस्थान है वो है सेना. जब तक हम भारत की सेना को हीरो समझें तब तक भारत की सेना शानदार काम करती रहेगी और हमारी हिफाजत करती रहेगी. मैं पीएम मोदी को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने सेना को सम्मान मिलना चाहिए वो दिया है. इसलिए आज ना सिर्फ किलाड़ी बल्कि आम नागरिक भी सेना में जाकर सेवा देना चाहते हैं.
राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा- पाकिस्तान का अस्तित्व ही इसी बात पर है कि वो भारत के साथ युद्ध जारी रखें. मैं यह बात वहां के आम नागरिकों के लिए नहीं कह रहा. क्योंकि वहां सत्ता के कई केंद्र हैं. लोकतंत्र का दिखावा है, आईएसआई है, फिर सेना है और तीनों कई बार अलग अलग सोचते हैं. करगिल के समय की बात करें तो इंटेलिजेंस में थोड़ी कमी थी. लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी सहमति थी कि सर्दी में दोनों देशों के सैनिक वापस चले जाएंगे. लेकिन पाकिस्तान ने धोखा करके अपने सैनिकों को वहां भेजा और पोजीशन ले ली. लेकिन मैं आज आपको भरोसा देता हूं कि जब तक हमारे देश के युवा योद्धा बनने की तैयारी करते रहेंगे. हमारे देश को डरने की जरूरत नहीं है.
राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा- पाकिस्तान की हरकत से उनपर कभी आगे विश्वास करना होगा तो दो बार सोचना सोचा. हमारे प्रधानमंत्री जब लाहौर गए उसी वक्त उनकी सेना भारत में घुसपैठ की प्लानिंग कर रहे थे. उनकी कोशिश थी हमें सियाचिन छोड़ना पड़े. उन्होंने पूरी दुनिया से कहा कि ये हमारी सेना नहीं है, ये तो आतंकवादी हैं. पाकिस्तानी सेना धोखे से करगिल में घुसी. पाकिस्तानी सेना के मारे गए जवानों की जेब से उनकी मेस के बिल निकल रहे थे. पाकिस्तनी सेना ने अपने सैनिकों के शव लेने से भी इनकार कर दिया. इसके बावजूद भारत ने उन्हें सम्मान के साथ दफनाया.
राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने कहा- अटल जी के नेतृत्व ने पूरे देश को एकजुट किया. मैं उस समय के प्रधानमंत्री वाजपेयी जी और सरकार को सलाम करता हूं. पहले जवानों की अंत्योष्टि युद्धभूमि में ही कर दी जाती थी लेकिन वाजपेयी जी ने फैसला लिया कि उनके शव उनके घर भेजे जाएंगे. जब उनके शवों को घर भेजना शुरू हुआ तब देश जागा और उनकी आत्मी हिली और सबने कहा कि हम युद्ध में साथ हैं. उस वक्त दोनों देश न्यूक्लियर पॉवर थे, इसलिए युद्ध कहां तक जाएगा ये किसी को पता नहीं था. इसलिए भारत ने कभी एलओसी क्रॉस नहीं की. इसकी तारीफ पूरी दुनिया में हुई कि भारत ने संकट की घड़ी में भी अनुशासन नहीं तोड़ा.
पूर्व सेनाध्यक्ष बिक्रम सिंह ने कहा-वर्तमान में करगिल जैसी कार्रवाई मुमकिन नहीं है, अब करगिल में पूरी तरह डिवीजन तैयार है. अब सर्दियों में भी जवानों की तैनाती रहती है. देश किसी भी चुनौती के लिए तैयार है.
शिखर सम्मेलन में अगले मेहमान हैं, पूर्व ओलंपियन और भारतीय सेना में कर्नल पद पर कमीशन रहे राज्यवर्धन सिंह राठौड़. राठौड़ की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सेना से है, उनके पिता कर्नल लक्ष्मण सिंह भी सेना में थे.
राज्यवर्धन सिंह राठौर ने कहा- हम सेना में भर्ती ही हुए थे, उस समय देश की सेना श्रीलंका में थी. हमारे सीनियर श्रीलंका में लड़के के लिए जा रहे थे, हम अपने नंबर का इंतजार कर रहे थे. 1999 में करगिल युद्ध का माहौल बनना शुरू हुआ. जब आप युद्ध की तैयारी करते हैं तब वो नहीं सीखते जो युद्ध के दौरान सीखते हैं. देश की सेना ही तरफ से अगल कहूं तो अब तो देश की सेना स्वागत करती है आतंकवादी आएं और उनका हम सफाया करें. हिंदुस्तान की सेना इसे लाइव ट्रेनिंग की तरह लेती है. जब युद्ध के लिए टुकड़ी भेजी जाती है तो जो पीछे छूट जाते हैं उन्हें दुख होता है कि मेरा नंबर क्यों नहीं आया.
पूर्व सेनाध्यक्ष बिक्रम सिंह ने कहा- करगिल कमेटी की रिपोर्ट के बाद जो भी कार्रवाई होनी थी हो गई. सारी खामियां भी पूरी कर ली गईं हैं. करगिल के बाद युद्ध नीति में बड़े बदलाव हुए. लेकिन मुझे लगता है कि अमेरिका के पेंटागन की तरह भारत में एक यूनिफाईड कमांड बने. जिसमें सभी अधिकारी मौजूद रहकर रणनीति बनाएं.
पूर्व सेनाध्यक्ष बिक्रम सिंह ने कहा- बड़े अधिकारियों ने भी लड़ाई में योगदान दिया लेकिन हमने यह लड़ाई जूनियर अधिकारियों और सैनिकों के जज्बे के दम पर जीती. करगिल में उन्हें सैनिकों के जोश से ही हम लड़ाई जीते. करगिल में मीडिया ने भी अहम लड़ाई लड़ी, मीडिया की रिपोर्टिंग से देश एकजुट हुआ. मीडिया की रिपोर्टिंग से जवानों और उनके परिवारों को भी सहारा मिल रहा है.
बिक्रम सिंह ने कहा- अभी राजनीति का वक्त नहीं है, अभी वक्त जीत के जश्न मनाने का है. अगर मैं यह कहूंगा कि उसके लिए कौन जिम्मेदार था, तो बात दूसरी दिशा में चली जाएगी. करगिल युद्ध की रिपोर्ट में सबकुछ लिखा है कि हमारका इंटेलिजेंस कहां कहां फेल हुआ. उस घटना के बाद इंटेलिजेंस में सुधर हुआ है. लेकिन आज वक्त उन खामियों को गिनने का नहीं है. आज वक्त सिर्फ जीत का जश्न मनाने का है.
पूर्व सेनाध्यक्ष बिक्रम सिंह ने कहा- करगिल युद्ध के दौरान सबसे मुश्किल घड़ी तब होती थी जब मैं शहीद जवानों की जानकारी देते थे. हमें इस बात का अहसास था कि जो शहीद की पत्नियां हैं, परिवार हैं उन पर क्या बीतेगी. इसलिए मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती यही होती. इसके अलावा मेरे लिए सारा कुछ सामान्य था. हम विदेश मंत्री जसवंत सिंह को ऑपरेशन की जानकारी दे रहे थे.
शिखर सम्मेलन में पहले मेहमान पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह हैं. करगिल युद्ध के दौरान बिक्रम सिंह कर्नल थे और युद्ध से जुड़ी जानकारी मीडिया से साझा करते थे.

पार्श्वभूमी

आज पूरा देश 'करगिल विजय दिवस' की 20वीं वर्षगांठ मना रहा है. साल 1999 में आज ही के दिन भारत माता के वीर सपूतों ने करगिल में पाकिस्तान को करारा जवाब दिया था. बीस साल बाद इस बेहद खास इस मौके वीर शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए के लिए देशभर में तमाम कार्यक्रम किए जा रहे हैं. रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली के वॉर मेमोरियल पर पाकिस्तान के छक्के छुड़ाते हुए शहीद होने वाले जवानों की वीरता को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी. रक्षा मंत्री के साथ थलसेना, वायुसेना और नौसेना तमाम वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे.


राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का खराब मौसम के चलते द्रास में वॉर मेमोरियल पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने का कार्यक्रम रद्द कर हो गया है. राष्ट्रपति श्रीनगर तक पहुंच गए हैं, यहां वे एक अन्य कार्यक्रम में हिस्सा लेकर शहीदों को नमन करेंगे. द्रास में करगिल युद्ध स्मारक पर तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने शहीदों के श्रद्धांजलि अर्पित की. शहीद जवानों की वीरता को श्रद्धांजलि देने से पहले राष्ट्रपति ने उनके योगदान को याद किया है. राष्ट्रपति ने ट्वीट किया, ''कारगिल विजय दिवस’, हमारे कृतज्ञ राष्ट्र के लिए 1999 में कारगिल की चोटियों पर अपने सशस्त्र बलों की वीरता का स्मरण करने का दिन है. हम इस अवसर पर, भारत की रक्षा करने वाले योद्धाओं के धैर्य व शौर्य को नमन करते हैं. हम सभी शहीदों के प्रति आजीवन ऋणी रहेंगे. जय हिन्द!''


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी करगिल विजय दिवस पाकिस्तान के छक्के छुड़ाते हुए शहीद हुए जवानों की वीरता को याद किया है. प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, ''कारगिल विजय दिवस पर मां भारती के सभी वीर सपूतों का मैं हृदय से वंदन करता हूं. यह दिवस हमें अपने सैनिकों के साहस, शौर्य और समर्पण की याद दिलाता है. इस अवसर पर उन पराक्रमी योद्धाओं को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. जय हिंद!'' करगिल विजय की 20वीं वर्षगांठ का जश्न 25 जुलाई से 27 जुलाई तक तीन दिन मनाया जा रहा है. कार्यक्रम का समापन 27 जुलाई को इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में 'करगिल विजय दिवस ईवनिंग' के बाद होगा जिसमें पीएम मोदी शामिल होंगे. ऑपरेशन विजय की 20वीं वर्षगांठ 'रिमेम्बर, रिज्वाइस एंड रिन्यू' की थीम के साथ मनाई जा रही है.


आज से 20 साल पहले चोरी छिपे भारतीय इलाकों में दाखिल हो कर उस पर कब्जा करने के पाकिस्तानी मंसूबों को भारतीय फौज ने पूरी तरह नाकाम कर दिया था. करगिल में 8 मई से 26 जुलाई तक जंग चली लड़ाई में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए थे करीब 1363 जवान जख्मी हुए. ऑपरेशन विजय 8 मई से शुरू होकर 26 जुलाई तक चला था. इसी खास जश्न के मौते पर एबीपी न्यूज़ लेकर आया है, करगिल जीत का जश्न मनाने के लिए शिखर सम्मेलन...

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